रविवार, 13 अप्रैल 2014

विनय

                 माँ मुझे वरदान दे दो
                  लेखनी को प्राण दे दो

 बुद्धि शीतल सहज हो शुभ
 भाव घन नभ मिलन चाहें
 एक हों मिल अश्रु बनकर
 चू पड़े विकणें न आहें
               चमक उठें प्रभु के चरण गिर
वे स्वयं पलकें उठा देखें .मुझे वह मान दे दो।-माँ--

 सरल शब्दों में दयामयि
 प्राण भर दो कर पसारूँ
अनुपम वीणा के तारों पर
चुन-चुन उन्हें सजा दूँ
               झंकृत तंत्री के हर स्वर पर
रस बरसे सब जग कटे शांति सबको दान दे दो।-माँ--

 हो निरंतर त्रस्त व्याकुल
 हो रही यह सृष्टि प्यारी
 भागती परमाणु से डर
छटपटाती अब बिचारी
              अमरत्व का संदेश जागे
फिर स्वयं  परमाणु ही जग हित करें वे गान दे दो।-माँ--

            

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