( प्रातः)
जब रजनि के अंतिम प्रहर में
श्याम जल की निदृित लहर में
प्रज्जवलित मधुरिमा चमक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
केवट की वंशी में पुलकन
द्रुम,पल्लव कुसुमों में थिरकन
लहरी भी पुलकी ,थिरक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
स्वर-लहरी मधु सा घोल रही
तरणी पी-पी कर डोल रही
मतवाली बनकर फुदक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
( दोपहर)
जो रही कुंज में मुग्ध प्रणयिनी
कल आई चंचल मृग नयनी
'क्यों आज नहीं' यह कसक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
वह बाट जोहता दिल थामे
'कब' प्रियतम मेरे आ जावें
रह-रह कर दिल में हूक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
वो न आये वह हुआ मौन
वह उर भी जलता रहा मौन
पर दिल की पीड़ा धधक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
(संध्या)
क्षण बेचैनी से बीत चले
'प्रियतम'की स्मृति में अश्रु ढले
पिक-पिक कर वंशी कूक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
जब रजनि के अंतिम प्रहर में
श्याम जल की निदृित लहर में
प्रज्जवलित मधुरिमा चमक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
केवट की वंशी में पुलकन
द्रुम,पल्लव कुसुमों में थिरकन
लहरी भी पुलकी ,थिरक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
स्वर-लहरी मधु सा घोल रही
तरणी पी-पी कर डोल रही
मतवाली बनकर फुदक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
( दोपहर)
जो रही कुंज में मुग्ध प्रणयिनी
कल आई चंचल मृग नयनी
'क्यों आज नहीं' यह कसक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
वह बाट जोहता दिल थामे
'कब' प्रियतम मेरे आ जावें
रह-रह कर दिल में हूक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
वो न आये वह हुआ मौन
वह उर भी जलता रहा मौन
पर दिल की पीड़ा धधक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
(संध्या)
क्षण बेचैनी से बीत चले
'प्रियतम'की स्मृति में अश्रु ढले
पिक-पिक कर वंशी कूक उठी
केवट की वंशी पुलक उठी
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