सोमवार, 20 जनवरी 2014

दीप तेरा मत जला--

बुझ जायेगा दीप तेरा
                  मत जला रे बावरे !

   पास फिर भी दूर ही वह,
   स्नेह भींगा भी जलेगा ।
   जल भरा तेरा निरंतर ,
   उर धधकता ही रहेगा ।

हो क्षीण अस्तित्व तेरा
                  क्या बचेगा बावरे ?
 
   जल उठेगा ताल देकर ,
   झूमती सी लौ रहेगी ।
   नाच उठेगा तू पागल ,
   गीत में श्वासें बहेंगीं ।

सहसा होगा गीत तेरा
                     चुप कहीं रे बावरे !

  पावसी श्यामा निशा में ,
  घोर घन झुक झुक हँसेंगे ।
  चीखती झंझा बहेगी ,
  कौन के कर ओट देंगे ।

जब बुलायेगा प्रिय तेरा
                      आह ले ले बावरे !

  प्रखरतम फिर मेहलों से ,
  निर्दय खिलवाड़ करेगा ।
  तोड़ देगी दम; विवश ,
  तू दूर से देखा करेगा ।

दौड़ेगा तू जब अँधेरा
                 छा चुकेगा बावरे !
                 मत जला रे बावरे !
 

  

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