दीप जलते जा रहे हो !
पूस, अमावस फिर अर्ध निशा
निस्तब्ध ठिठुरती अँधियारी
शालों में लिपटे धनिक दीन-
की काँप उठी जगती सारी
किस अदृश्य के डूबे पथ पर
अपना प्रकाश बिछा रहे हो
यह क्या ? किस कोने से आती
कवित झंनन झन की झंकार
गाने का उपक्रम कर कोई
क्या रुदन का रचता संसार
विस्मय है क्यों चुप थे अब तक
फिर क्यों गाने जा रहे हो ?
चंचल शैशव गया फुदकता
पर पा न सके मंजुल दुलार
अब यौवन भी गंभीर बना
पर मिला तुम्हें कब मधुर प्यार
क्या अनंत से ही कुछ पाने
तन जलाते जा रहे हो
पूस, अमावस फिर अर्ध निशा
निस्तब्ध ठिठुरती अँधियारी
शालों में लिपटे धनिक दीन-
की काँप उठी जगती सारी
किस अदृश्य के डूबे पथ पर
अपना प्रकाश बिछा रहे हो
यह क्या ? किस कोने से आती
कवित झंनन झन की झंकार
गाने का उपक्रम कर कोई
क्या रुदन का रचता संसार
विस्मय है क्यों चुप थे अब तक
फिर क्यों गाने जा रहे हो ?
चंचल शैशव गया फुदकता
पर पा न सके मंजुल दुलार
अब यौवन भी गंभीर बना
पर मिला तुम्हें कब मधुर प्यार
क्या अनंत से ही कुछ पाने
तन जलाते जा रहे हो