शनिवार, 11 मई 2013

क्रांतिवीर अवतार धरो

भोर की किरणों में पहली सी लाली अब कहां
सूर्य में भी तपीश की वो तपिशता अब कहां
ढलता सूरज चांदनी और रात भी है उदास                                                                                                  हवा है बहकी हुई मौसम भी हो गया खराब
सब कुछ बदला सा है सहमी सहमी रात है
हर किसी के दिल के अंदर ऐ कैसी आग है
देश भक्ति मात्र भूमि भावनायें सब खो गईं
तरुणों की तरुणाई भी शायद अब है सो गई
ठंडी बियर से खून भी लोगों का ठंडा हो गया
नेताओं का चरित्र भी आदिम सा नंगा हो गया
न्याय की आसंदी जख्मी खुद ही न्याय मांगती
संसद के गलयारे अब त्राहीमाम पुकारते
आओ क्रान्तिवीर फिर आओ अब अवतार धरो
भारत माँ पुकार रही भारत माँ पुकार रही

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