एक सुघड़ संध्या बेला में ,
अनजाने कोयल कूक उठी ।
पल्लव-कुसमों सँग झूम पड़े,
मेरे मन में भी हूक उठी ।
- - -
मैं बोल उठा सुर में सुर दे ,
क्यों कुहकिन कैसे कूक पड़ी ।
किस व्यथिता की मर्म वेदना,
लेकर अनजाने फूट पड़ी ?
- - -
सुन पगली सी हँस भागी वह,
वह सुमन पत्र पर लुढ़क पड़ा ।
लो लता-कुंज सब सिहर पड़े,
मैं बौराया सा रहा खड़ा ।
अनजाने कोयल कूक उठी ।
पल्लव-कुसमों सँग झूम पड़े,
मेरे मन में भी हूक उठी ।
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मैं बोल उठा सुर में सुर दे ,
क्यों कुहकिन कैसे कूक पड़ी ।
किस व्यथिता की मर्म वेदना,
लेकर अनजाने फूट पड़ी ?
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सुन पगली सी हँस भागी वह,
वह सुमन पत्र पर लुढ़क पड़ा ।
लो लता-कुंज सब सिहर पड़े,
मैं बौराया सा रहा खड़ा ।