बस चाहा ही था विरह दान
सतत मिलन के स्वप्न मधुरतम,
पंख पसारे उड़ उड़ आये ।
जीवन संध्या तक आशा के,
सरस राग कलरव बरसाये ।
एक अधूरा चित्र सजाने,
कितना सुंदर रंग मिलाये।
अरे बाज सा झपट पड़ा,
वह काल निशा सा उपड़ पड़ा।
वह अविरल जल सा बरस पड़ा,
कररव ,संध्या, चित्र सभी थे
डूब गये वे सजल गान
बस चाहा ही था विरह दान।
सतत मिलन के स्वप्न मधुरतम,
पंख पसारे उड़ उड़ आये ।
जीवन संध्या तक आशा के,
सरस राग कलरव बरसाये ।
एक अधूरा चित्र सजाने,
कितना सुंदर रंग मिलाये।
अरे बाज सा झपट पड़ा,
वह काल निशा सा उपड़ पड़ा।
वह अविरल जल सा बरस पड़ा,
कररव ,संध्या, चित्र सभी थे
डूब गये वे सजल गान
बस चाहा ही था विरह दान।