---गतांक से आगे-
जग के सभी सहारे छूटे ?
तृषित तड़पती धरती से क्या,
सजल सघन घन प्यारे रूठे ?
निविड़ तिमिरमय पथ के दीपक,
नभ से क्या सब तारे टूटे ?
झंझा में व्याकुल नैया से,
क्या अब निठुर किनारे छूटे ?
क्या अपने ही एक नीड़ में,
आज अपरिचित मैं अनजाना?----मन में कसक--
मेघ तड़ित से परिचय पूछे !
जलिध न लहरों को पहचाने!
यह कैसा उपहास भला क्या !
नाद प्राण के गान न जाने !
दीपक आँचल ओट किया क्यों?
प्यार जताने या कि बुझाने ?
और कहूँ क्या कह न सकूँ अब,
बीत रही सो मन ही जाने ,
स्निग्ध ज्योत्सना त्याग चुकी जब,
मुसका कर पीयूष पिलाना ।----मन में कसक यही---