वर्तमान +भावी
अरे क्षितिज से झाँक रही वह(लो)
आभा कैसी आशा बनकर
क्या आ पहुँचा हूँ उसी कूल ?
या फिर मिल जायेगी सजकर
वही परिचिता जिसको मैंने
घनश्याम क्षणों में पाला था
उर में पुनः सम्हाला था ।--स्वयं प्रकाश--
अरे क्षितिज से झाँक रही वह(लो)
आभा कैसी आशा बनकर
क्या आ पहुँचा हूँ उसी कूल ?
या फिर मिल जायेगी सजकर
वही परिचिता जिसको मैंने
घनश्याम क्षणों में पाला था
उर में पुनः सम्हाला था ।--स्वयं प्रकाश--