तेरे मन की बात न जानूँ ,
भ्रमित भ्रमण के चक्र व्यूह में
विकल हुआ पर राह न पाई
बंदी विवश प्रतिध्वनि जैसे
यहाँ वहाँ भटकी टकराई ,
यहाँ कपट-छल के पग पग पर
जाल बिछे हैं कभी न जाना
ठगा गया मैं बार बार पर
ठग न गया मुझसे पहचाना ,
मधुर रूप या मृदुल स्वरों में,
छिपा हुआ क्या ताप न जानूँ ।---तेरे---
मैं सबसे एकांत बटोही
सहसा पथ में मिलीं नेक तुम
यहाँ अपरिचित जग में मुझको
चिर परिचित सी लगी एक तुम,
बैठ प्यार से तुमने मेरी
आँचल से चोटें सहलाईं
तेरे उर पर शीश टिकाकर
मैंने रातें जाग बिताईं,
चुम्बन में अमृत भर देतीं ,
या मदिरा का ताप न जानूँ ।--तेरे---
तेरी मुस्कानों में क्या है
प्यार या कि उपहास, न जानूँ
तेरे बोल सरल, शिशु से या
लिए कपट व्यवहार, न जानूँ
आलिंगन में कहो मुझे क्या
नई चेतना मिल जायेगी
एक सरल उर की कलिका या
फिर न कभी भी खिल पायेगी
ह्रदय लगाकर सुला सकोगी,
या कि करोगी घात , न जानूँ ।--तेरे0---
भ्रमित भ्रमण के चक्र व्यूह में
विकल हुआ पर राह न पाई
बंदी विवश प्रतिध्वनि जैसे
यहाँ वहाँ भटकी टकराई ,
यहाँ कपट-छल के पग पग पर
जाल बिछे हैं कभी न जाना
ठगा गया मैं बार बार पर
ठग न गया मुझसे पहचाना ,
मधुर रूप या मृदुल स्वरों में,
छिपा हुआ क्या ताप न जानूँ ।---तेरे---
मैं सबसे एकांत बटोही
सहसा पथ में मिलीं नेक तुम
यहाँ अपरिचित जग में मुझको
चिर परिचित सी लगी एक तुम,
बैठ प्यार से तुमने मेरी
आँचल से चोटें सहलाईं
तेरे उर पर शीश टिकाकर
मैंने रातें जाग बिताईं,
चुम्बन में अमृत भर देतीं ,
या मदिरा का ताप न जानूँ ।--तेरे---
तेरी मुस्कानों में क्या है
प्यार या कि उपहास, न जानूँ
तेरे बोल सरल, शिशु से या
लिए कपट व्यवहार, न जानूँ
आलिंगन में कहो मुझे क्या
नई चेतना मिल जायेगी
एक सरल उर की कलिका या
फिर न कभी भी खिल पायेगी
ह्रदय लगाकर सुला सकोगी,
या कि करोगी घात , न जानूँ ।--तेरे0---