सजनि अब यह रुदन कैसा
आज कुसमय रुदन कैसा
मिलन की मधु स्मृति कैसी
आँसुओं का कर बहाना
ह्रद-वीणा झंकृत करने
अब कहाँ है वह तराना
दूर नगरिया तेरी रे
फिर यहाँ प्रिय रुदन कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
- - -
घोर दुख घन मेघ बनकर
छा रहे गर्जन सुनाने
विपद् की आपदा बहाई
शरण गृह को भी उड़ाने
बन अचला तू आज सजनि
'राम' का विस्मरण कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
-- - -
कर्म पथ पर जा चढ़ी हो
दूर मधु संसृति बसाने
कर्म करते कष्ट होगा
सहन कर जीवन बनाने
पूर्ण कर भव पार होगा
अमर हो फिर 'मरण' कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
- - -
मिलन की मधु स्मृति छिपाले
व्यथित उर के विकल तल में
विकलता घुल बह न आये
भेद देने नयन जल में
विपद् के इन दो क्षणों(दिनों) में
आँसुओं का सृजन कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
आज कुसमय रुदन कैसा
आज कुसमय रुदन कैसा
मिलन की मधु स्मृति कैसी
आँसुओं का कर बहाना
ह्रद-वीणा झंकृत करने
अब कहाँ है वह तराना
दूर नगरिया तेरी रे
फिर यहाँ प्रिय रुदन कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
- - -
घोर दुख घन मेघ बनकर
छा रहे गर्जन सुनाने
विपद् की आपदा बहाई
शरण गृह को भी उड़ाने
बन अचला तू आज सजनि
'राम' का विस्मरण कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
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कर्म पथ पर जा चढ़ी हो
दूर मधु संसृति बसाने
कर्म करते कष्ट होगा
सहन कर जीवन बनाने
पूर्ण कर भव पार होगा
अमर हो फिर 'मरण' कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
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मिलन की मधु स्मृति छिपाले
व्यथित उर के विकल तल में
विकलता घुल बह न आये
भेद देने नयन जल में
विपद् के इन दो क्षणों(दिनों) में
आँसुओं का सृजन कैसा
सजनि अब यह रुदन कैसा
आज कुसमय रुदन कैसा