रविवार, 9 फ़रवरी 2014

आज कैसे गीत गाऊँ ?

आज कैसे गीत गाऊँ ?/

   पास थी प्रतिमा वही पर
   था कहीं पर सो रहा में
   अब जगा क्यों देर कर जब
   हाय ! बेबस  रो रहा  मैं ?
ये गरम बूंदे छिपाये हैं
कथा मैं क्या सुनाऊँ ?    --आज--

   धुल रहे हैं आँसुओं से
   भूत के वे चित्र प्यारे
   छिप गये थे जो जगाकर
   मौन गीतों को हमारे
देखना चाहूँ उन्हें फिर
पर कहो कैंसे सजाऊँ ? ---आज--

   गीत जिस पर नाचते थे
   हूँ वही वीणा अकेली
   तार टूटे और उलझे
   धूल खाती हूँ अकेली
शून्य वीणा , स्वर भरूँ ?
कोई नहीं , किसको रिझाऊँ ? --आज--

   तुम गये सब साज लेकर
   मिट चुकी संसृति हमारी
   झूठ का आलम बसाकर
   ढूँढता हूँ छबि तुम्हारी
ज्ञात है भ्रम में पड़ा हूँ
पर कहो कैसे भुलाऊँ ? --आ----


रविवार, 2 फ़रवरी 2014

-:जीवन:-

यह जीवन एक कहानी है ,
               जो बिखरी जग के कण-कण में ।
जिसका ओर न छोर कहीं है ,
               जो बढती  जाती  छण-छण  में ।
यह जीवन सुंदर वीणा है ,
               जो  तुम्हें  बजाना  ही  होगी ।
सब जगती की सुध बिसराकर ,
              यह तुम्हें  सुनाना  ही  होगी ।
यह जीवन लम्बी एक सफर ,
              युग-युग तक चलते जाना है ।
धर्म- अधर्म दो मार्ग दीर्घ ,
              बस उन पर  बढते  जाना  है ।
इक पाप-पुण्य की गठरी ही ,
              हर दम साथ  तुम्हारा  देगी ।
बस राम- नाम की ही लाठी ,
              तुमको 'उस' तक पहुँचा देगी ।
यह जीवन गूढ़ समस्या है ,
              जिसको सुलझाना  ही  होगा ।
जन्म-जन्म के बाद सही पर ,
              मोक्ष तुम्हें  पाना  ही  होगा ।