हर कर्म ऐसा करो कि जिससे तेरा मान हो, हर कदम आगे बढे जो वो तेरी पहचान हो. कर्म से बन जाये पथ पर तेरे कदमो के निशां, मंजिलें बन जाय उनसे रोशन हर इंसान हो.
शनिवार, 30 नवंबर 2013
सोमवार, 4 नवंबर 2013
हे दीपे(2)
दीपे !
तुम्हारे स्वागत में क्या जलाऊँ ?
हर बार तुम आती हो
और मैं दीप जलाना भूल जाता हूँ ?
खैर,अब आना तो एक बात याद रखना
इस मन में एक शाश्वत ज्योति छोड जाना
जो सतत सभी के स्वागत के मार्ग में
स्निग्ध प्रकाश बिछाती रहे !
तब तुम्हें यहाँ से निराश हो कर
लौटना न पडेगा !
हे दीपे(1)
दीपे !
तुम आई और चलीं भी
किन्तु तुमने यह न बताया
कि कौन सा स्थान तुम्हें भला लगा ?
कहाँ तुम्हारा मन लगा ?
महल में या ह्रदय में ?
तुम आई और चलीं भी
किन्तु तुमने यह न बताया
कि कौन सा स्थान तुम्हें भला लगा ?
कहाँ तुम्हारा मन लगा ?
महल में या ह्रदय में ?
शनिवार, 2 नवंबर 2013
सत्य...न भूलें
दीप ! आज दीवाली है, तुम्हारी पूँछ हुई ,
विशेष प्यार से
विशेष ध्यान से !
वैभव के इस संसार में..अट्टालिका के शिखर पर
आसीन हो ; शोभाव्रद्धि के साधन मात्र , छि: !
प्रसन्नता से झूम तो रहे हो बार-बार ; किन्तु
समस्त शक्ति का यूँ ही क्षय न हो जाय !
अर्द्ध-रात्रि में जब मानव संसार सुप्त होगा
तब प्राणशक्तिहीन तुम पुकारते ही रह जाओगे
निस्सहाय !
किंतु तुम्हारी पुकार भी तुमतक ही
रह जायेगी , बाती चढाने भी कोई न
आयेगा और ......
वायु के एक निर्मम झोंके में ही बह
जायगी तुम्हारी प्रसन्नता तुम्हारा
जीवन ,तुम्हारे वैभव का संसार .
दीपक ! मानव के मद भरे संसार में फँसे तो
हो किंतु भूल न जाना कि कहाँ से आये हो..
झोंपडी से ,
मिट्टी से !
विशेष प्यार से
विशेष ध्यान से !
वैभव के इस संसार में..अट्टालिका के शिखर पर
आसीन हो ; शोभाव्रद्धि के साधन मात्र , छि: !
प्रसन्नता से झूम तो रहे हो बार-बार ; किन्तु
समस्त शक्ति का यूँ ही क्षय न हो जाय !
अर्द्ध-रात्रि में जब मानव संसार सुप्त होगा
तब प्राणशक्तिहीन तुम पुकारते ही रह जाओगे
निस्सहाय !
किंतु तुम्हारी पुकार भी तुमतक ही
रह जायेगी , बाती चढाने भी कोई न
आयेगा और ......
वायु के एक निर्मम झोंके में ही बह
जायगी तुम्हारी प्रसन्नता तुम्हारा
जीवन ,तुम्हारे वैभव का संसार .
दीपक ! मानव के मद भरे संसार में फँसे तो
हो किंतु भूल न जाना कि कहाँ से आये हो..
झोंपडी से ,
मिट्टी से !
शुक्रवार, 1 नवंबर 2013
शिकायत देवी लक्ष्मी से
देवी लक्ष्मी ! ( विभवदायिनी )
आखिर तुम आ गईं
इठलाती हुई हर दीप-शिखा के साथ बल खाती हुई ,
किंतु तुम भूल गई
जहाँ दीपमालिका(महलों) ने हेम बिछाकर
तुम्हारा स्वागत किया वहाँ...
दौड पडी
नाच उठी
हर पग से झनकार बरसा दी
और जहाँ झोंपडी की टूटी चौखट
पर सिर झुकाए
बस एक दीपक ने विनय पूर्वक
न जाने कब की सहेजी फीकी
मुसकान बरबस छिटका दी वहाँ...
तनिक रुक भी न सकीं !
चुपके से, आँख बचाकर निकल आईं !!
मुडकर भी न देखा !!!
आखिर तुम आ गईं
इठलाती हुई हर दीप-शिखा के साथ बल खाती हुई ,
किंतु तुम भूल गई
जहाँ दीपमालिका(महलों) ने हेम बिछाकर
तुम्हारा स्वागत किया वहाँ...
दौड पडी
नाच उठी
हर पग से झनकार बरसा दी
और जहाँ झोंपडी की टूटी चौखट
पर सिर झुकाए
बस एक दीपक ने विनय पूर्वक
न जाने कब की सहेजी फीकी
मुसकान बरबस छिटका दी वहाँ...
तनिक रुक भी न सकीं !
चुपके से, आँख बचाकर निकल आईं !!
मुडकर भी न देखा !!!
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