दीपक की सस्मित लौ से अनवरत प्रकाशित
प्रकोष्ठ में कहीं सिमटा हुआ सघन अंधकार .....................
बाती जल रही थी .....स्नेह भी तो ! ............
और फिर मिट्टी का दीपक...............पिये जा
रह था........न जाने कैसे उसकी प्यास पुन: जाग्रत
हो उठी थी !........
बाती ? बाती ?.........कहाँ.........
वह तो जल चुकी थी .............स्नेह ?
..........हलके बडे झोंकों में भी जीवित , उन्हें भी
उज्ज्वल कर देने वाला दीपक ! ............
कज्जल सघन अंधकार लील रहा है......
धीरे ,सुनिश्चित भीषण ! भीषण !!
यहाँ वहाँ प्रकाश के धब्बे दीवार पर
छिटके हैं ....अरे वे भी तो घुल रहे हैं !
बाती ..... निष्फल है बढाना(उठाना)
स्नेह ! स्नेह !! स्नेह !!!......
अम्रत हो जायेगा .
(ज्वरावस्था में लेखबद्ध)
प्रकोष्ठ में कहीं सिमटा हुआ सघन अंधकार .....................
बाती जल रही थी .....स्नेह भी तो ! ............
और फिर मिट्टी का दीपक...............पिये जा
रह था........न जाने कैसे उसकी प्यास पुन: जाग्रत
हो उठी थी !........
बाती ? बाती ?.........कहाँ.........
वह तो जल चुकी थी .............स्नेह ?
..........हलके बडे झोंकों में भी जीवित , उन्हें भी
उज्ज्वल कर देने वाला दीपक ! ............
कज्जल सघन अंधकार लील रहा है......
धीरे ,सुनिश्चित भीषण ! भीषण !!
यहाँ वहाँ प्रकाश के धब्बे दीवार पर
छिटके हैं ....अरे वे भी तो घुल रहे हैं !
बाती ..... निष्फल है बढाना(उठाना)
स्नेह ! स्नेह !! स्नेह !!!......
अम्रत हो जायेगा .
(ज्वरावस्था में लेखबद्ध)