रविवार, 25 अगस्त 2013

नारी शक्ति

नारी शक्ती  पुंज सृष्टि  का
सृष्टि संचलन का आधारा
नारी ज्योति कलश बन जाये
हर पथ को कर दे उजयारा
नारी  है  सौगात  अनूठी
परम पिता की इस दुनिया में
शक्ति उसे क्या देगा  ये जग
जिसमें शक्ती श्रोत समाया

बुधवार, 14 अगस्त 2013

शुभकामनायें

स्वतंत्रता दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनायें.

राष्ट्र-हितैषी व्रतधारी

                   (मतगयंद सवैया)
नित्य करे दुख से अति रोदन हा ! यह भारत भूमि बेचारी .
खाकर ठोकर बैठ रही चुप और गँवा निज सम्पत्ति सारी .
भोजन-वस्त्र-विहीन पडी प्रभु ! मौत बिना मरती वह मारी .
हैं कर से चुडियां तक गायब और कहूँ  अब क्या जगधारी ..
आलस त्याग बनो सब ही अब कर्मठ भारत के नर नारी .
क्लेश हरो मिल के अब तो सब है वह हा ! अति दीन दुखारी .
भारत-लाज रखो युवको तुम है बिनती यह तात हमारी .
राष्ट्र-हितार्थ जियो करके प्रण और बनो सब ही व्रतधारी ..

रविवार, 11 अगस्त 2013

गुलाब का विकसता हुआ फूल

                           (परवशता)
इसमें मेरी क्या है भूल!
यौवन ही क्यों दिया राम ने,विकसे क्यों मस्ती के फूल!
मदमाता क्यों पवन दौडकर,देता  हठकर अँचल  हूल !
रवि की किरणें अवसर पाकर,
                           घुस जाती हैं क्यों आ आकर !
भौंरे करिया क्यों मडराकर,
                           जबरन  झूमें  दाव  लगाकर !
सघन पात सम बसन उढाकर,
                           क्रोध कटीली  बाड  लगाकर !
लुककर छिपकर आँख बचाकर,
                          कोशिश कर ली खूब छिपाकर,
बुझी हुई सी काम-ज्योति फिर,उकसाते क्यों बन अनुकूल!
मोह-जनित ये झूठ प्रेम से,भरमाते क्यों बन मन-शूल ! !
                                         इसमें मेरी  क्या है  भूल ! !

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

ह्रदय-हूक ही मेरी कविता

कविता मेरी क्या है मानो,
                   तुक बेतुक की अजब कहानी.
बक्ङिल बँचक भाषा वाणी,
                   जोड  तंगोरी  ऐंचक  तानी ..
मानस मेरा मानसरोवर,
                   विमल भावनाओं का पानी.
प्यास बुझावेगा सबकी ही,
                  जडमति पिये कि पण्डित Kkनी..
ह्रदय-गगन के भाव-पवन में,
                  पंख फुलाती उडाती आती.
आत्म o`{k ी सन्मति-डाली,
                  कोयल सम छिप कूक लगाती..
गुन-गुन उसकी कुहू-कुहू सम,
                 श्रम-हर सुख-रस-धार बहाती.
और दिखाती सत्पथ मुझ को,
                 जन-सेवा की  राह  बताती..

रविवार, 4 अगस्त 2013

भक्त की आकाँक्षा(2)

                  (मदिरा सवैया)
राम बसे मन माहिं सदा अरु,दीप जले नित Kkन हिये.
शील दया क्षमता भर सुन्दर,पात्र सदा मधु पान किये.
कर्म करूँ नित लोक-हितेच्छुक,और सभी कुछ दान किये.
प्रेम भरा जब डोल फिरूँ तब,क्या जग में फल और जिये.

भक्त की आकांक्षा(1)

वास करो प्रभु मुझमें तुम,में लीन रहूँ तुझ में.
जीवन का बस सार यही,प्रभु वास रहे मुझ में.
उठे न मन अभिमान कभी,अब हे जगदीश जरा.
पतन मूल वह,सत्य सदा,यह शास्त्र प्रमाण खरा.

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

जीवनादर्श

क्षमा सुशान्ति दया को, समझ धर्म के मूल .
जो जन बर्तत जगत में, क्रोध करें ना भूल .
क्रोध पाप का मूल है ,जानो आग समान .
अंदर धधके आप खुद ,पर-तन काठहि जान.
अथवा यह कह डालिये,द्विविध तेज तलवार.
घातक बन खुद आपको,पर घातक भरमार.
खिसक जाय जल-बूँद ज्यों,जलज पात पर देख.
सहजहि बिनु देख ताप के,प्राणहि प्रभु-संग लेख.