कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ !
घन्टा झालर बजा-बजा कर, सोते को ज्यों जगा जगा कर,
त्रिपुण्ड भारी लगा लगा कर , फूल मिठाई बता बता कर,
कहते मुझको भर के थारी,ले लूं ! कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
लगा लंगोटी भस्म रमा कर,जटा जूट शिखा बढा कर,
गला फाड भी चीख चिलाकर,ढोंगों की बस! इसी बिना पर,
कहते मुझसे भर के थारी ले लूं ! कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
तरष्णा ज्वाला जलती फर-फर, डाह दरांती चलती कर- कर,
काम-क्रोध-नद बहकर खर-खर,प्रेम शांति को ढाता भर-भर,
फिर भी कहते भर के थारी ले लूं !कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
ह्रदय स्त्रोत के प्रेम कुण्ड पर,विकस कज्ज हों भव्य भावभर,
भक्ति Kान जब रहे वास तर,गुज्ज भ्रंग बन आत्म चाव कर,
मैं ही वह हूँ फिर क्या थारी ले लूं ! कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
घन्टा झालर बजा-बजा कर, सोते को ज्यों जगा जगा कर,
त्रिपुण्ड भारी लगा लगा कर , फूल मिठाई बता बता कर,
कहते मुझको भर के थारी,ले लूं ! कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
लगा लंगोटी भस्म रमा कर,जटा जूट शिखा बढा कर,
गला फाड भी चीख चिलाकर,ढोंगों की बस! इसी बिना पर,
कहते मुझसे भर के थारी ले लूं ! कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
तरष्णा ज्वाला जलती फर-फर, डाह दरांती चलती कर- कर,
काम-क्रोध-नद बहकर खर-खर,प्रेम शांति को ढाता भर-भर,
फिर भी कहते भर के थारी ले लूं !कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!
ह्रदय स्त्रोत के प्रेम कुण्ड पर,विकस कज्ज हों भव्य भावभर,
भक्ति Kान जब रहे वास तर,गुज्ज भ्रंग बन आत्म चाव कर,
मैं ही वह हूँ फिर क्या थारी ले लूं ! कह दो कैसे भेंट तुम्हारी ले लूं !!